14दिन में बिजली काटना—क्या यह जनता पर अत्याचार नहीं?

क्या यह जनता पर अत्याचार नहीं?

14दिन में बिजली काटना—क्या यह जनता पर अत्याचार नहीं?

रतलाम 28 नवम्बर 2025 ।भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में बिजली अब केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवसाय, संचार, डिजिटल भुगतान, सरकारी योजनाओं का लाभ — सब बिजली पर निर्भर हैं।

ऐसी स्थिति में बिजली कंपनियों की यह नीति कि मात्र 14 दिन बिल लंबित होते ही बिजली काट दो, सीधे-सीधे जनता का शोषण है। वह भी तब जब बिजली कम्पनी के पास उपभोक्ता की सुरक्षा निधि जमा रहती हे ।

क्या जनता अपराध कर रही है कि बिजली काट दी जाए?

चिंतक , विचारक कमल पाटनी के इसबयान का समर्थन करते हूए सामाजिक कार्यकर्त्ता निर्मल कटारिया ने बताया कि देश में करोड़ों उपभोक्ता समय पर बिल भरते हैं, लेकिन कभी-कभार

बीमारी , आकस्मिक खर्च, नौकरी या व्यापार में संकट, बैंक UPI/नेटवर्क समस्या

वृद्धावस्था / अकेले रहने वाले परिवार ,इन कारणों से 10–15 दिन की देरी हो जाने पर बिजली काट देना किस लोकतांत्रिक व्यवस्था में उचित माना जाएगा?

14दिन में बिजली काटना—क्या यह जनता पर अत्याचार नहीं?

14दिन में बिजली काटना—क्या यह जनता पर अत्याचार नहीं?

दोष किसका है

उपभोक्ता का या सिस्टम का?

DISCOM की वित्तीय समस्याएँ जनता की देन नहीं, बल्कि— वितरण हानि ,भ्रष्टाचार,अक्षमता ,चोरी रोकने में विफलता — जैसी खामियों का परिणाम हैं । इन कमियों को छिपाने के लिए निर्दोष जनता पर बिजली-कटौती का डंडा चलाना अन्याय है । दुनिया में कहाँ 15 दिन में बिजली काटी जाती है ?

अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन, जापान—सभी देशों में 45–90 दिन तक बिजली काटने पर रोक है ।

हमारे यहा  14 दिन नीति सबसे कठोर, सबसे असंवैधानिक और सबसे जन-विरोधी है ।

बिजली काटना —गरीबों के लिए सजा के समान हे ।

जो व्यक्ति 1000–1500 रुपये का बिल 14 दिन में नहीं चुका पाया, वह महल में रहने वाला नहीं, बल्कि मजदूर,किसान,निम्न आय, वर्ग ,छोटे दुकानदार होता है।उस पर दंडात्मक नीति लागू करना मानवता के विरुद्ध है ।

देश में जनता अब जागरूक है ।  बिजली कंपनियों की अतिवादी नीतियों पर सख्ती से सवाल उठाना और सरकार से उपभोक्ता-हित में सुधार मांगना लोकतांत्रिक अधिकार है ।

14दिन में बिजली काटना—क्या यह जनता पर अत्याचार नहीं?

बिजली काटना अंतिम कदम होना चाहिएपहला नहीं।

14 दिन की कठोर नीति को तुरंत खत्म कर “60 दिन अनुग्रह अवधि + नोटिस + आसान किश्त योजना” को लागू किया जाना चाहिए ।

यह केवल लोकतांत्रिक सुधार ही नहीं, बल्कि ,गरीब-मध्यम वर्ग की जीवन रक्षा का प्रश्न है ,श्री कटारिया ने बताया कि श्री कमल पाटनी का यह बयान उन विधुत उपभोक्ताओं के हितों पर कुठाराघात है जो नियमित बिल भरते है , कभी कभार आर्थिक समस्या के चलते बिल भरने में  देरी करते है. शासन को चाहिए कि विधुत उपभोक्ता हितों को ध्यान में रखते हूए इस आदेश को निरस्त करने के आदेश संबंधित विभाग को दें. ।

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