तीन बार दहन के बावजूद खड़ा रहा रावण — जनता में फूटा गुस्सा, प्रशासन बना दर्शक
Ravana Dahan in Ratlam fell prey to corruption. मैं रावण नहीं भ्रष्टाचार हू मुझे नहीं अपने अंदर के भ्रष्टाचार को जलाओ 3 मर्तबा जलाया रतलाम के रावण को
विशेष संवाददाता Rajesh Wasanwal | रतलाम
Ratlam / MP. / ऐसा नजारा रतलाम के नेहरू स्टेडियम में देखने को मिला जब रावण को तीन बार प्रशासन द्वारा दहन किया रावण दहन होने को तैयार नहीं हुआ अर्ध दहन से पब्लिक में रावण दहन को लेकर काफी गुस्सा देखने को मिला
मेरी यह खबर शायद उन जिम्मेदारो तक अवश्य पहुचेगी एवं गहरी सामाजिक और राजनीतिक व्यथा को उजागर करती हैं। इसमें प्रतीकात्मक रूप से रावण के पुतले को भ्रष्टाचार से जोड़ते हुए यह संदेश दिया गया है कि असली रावण आज का भ्रष्टाचार है, जिसे हमें सच में जलाना चाहिए — न कि केवल प्रतीकात्मक पुतले को।
“मैं रावण नहीं, भ्रष्टाचार हूँ
मुझे नहीं, अपने अंदर के भ्रष्टाचार को जलाओ।
तीन बार दहन किया रतलाम के रावण को,
प्रशासन हँसता रहा,
जनसामान्य में गुस्सा देखा,
घर नहीं लौटी जनता,
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा रतलाम का रावण।”**
व्याख्या:
यह कविता/पंक्तियाँ एक तीखा व्यंग्य है हमारे समाज और प्रशासन पर।
यह दर्शाती है कि हर साल दशहरे पर हम रावण का पुतला जलाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं,
लेकिन असली रावण — भ्रष्टाचार — जीवित रहता है, फलता-फूलता है।
रतलाम जैसे शहर में जब जनता तीन बार रावण दहन करके भी अपनी बात नहीं मनवा पाई,
और प्रशासन केवल तमाशा देखता रहा, तो यह एक चेतावनी है कि अब वक्त आ गया है केवल पुतले नहीं, व्यवस्था में बैठे असली रावणों को जलाने का।
“इस बार रावण नहीं जला — रतलाम ने भ्रष्टाचार की आग में झुलसी विजयदशमी”
रतलाम की विजयदशमी इस बार सिर्फ एक परंपरा नहीं थी — यह एक सवाल थी, एक प्रतीक थी, और एक चेतावनी भी। शहर के हृदयस्थल पर जब रावण का पुतला तीन बार जलाया गया, फिर भी वह नष्ट नहीं हुआ, तो वहां खड़ी भीड़ सिर्फ तमाशबीन नहीं रही — वह बोल उठी:
“मैं रावण नहीं, भ्रष्टाचार हूँ — मुझे नहीं, अपने भीतर बैठे रावण को जलाओ!”
शायद यह पहली बार नहीं ऐसा पिछली बार भी था कि रावण अधूरा जला, लेकिन यह पहली बार था जब दहन में न जलने वाला रावण ‘भ्रष्टाचार’ के रूप में जनचेतना का केंद्र बन गया।
तीन बार दहन — फिर भी जिंदा रहा ‘वह’
कार्यक्रम में पहली चिंगारी से जनता का उत्साह चरम पर था, लेकिन जैसे ही पुतला अधजला रह गया, माहौल में बेचैनी फैल गई। आयोजकों ने फिर प्रयास किया, और फिर भी वही हश्र। तीसरी बार भी आग की लपटें उठीं, लेकिन रावण पूरी तरह नहीं जला — और यहीं से शुरू हुई एक नई कहानी।
लोगों ने कहा:
“यह कोई तकनीकी खराबी नहीं, यह व्यवस्था का आईना है।” जो जिम्मेदारीयों को उजागर करता है प्रशासन किस प्रकार से लापरवाह हो सकता है उसे आज लगभग 50हजार शहर गांव की जनता से अपनी आखो से देखा है
जनता खड़ी रही, प्रशासन बैठा रहा
कलेक्टर के तीन बार आदेश देने पर जिम्मेदार अपना मुह मोडते रहे ठेकेदार कहने लगा पेट्रोल ख्त्म हो गया है डीजल खत्म हो गया है महापोर प्रहलाद पटेल से इस संबंध में बात करने पर कहा कि दुसरे स्थान पर रावण दहन हो चुका है ठेकेदार के संबंध में पुछने पर कहा कि कई वर्षो से एक ही ठेकेदार को कार्य दिया जा रहा है। रावण निर्माण करने वाले व कराने जिम्मेदार अपनी जिम्ेदारी से भागते नजर आये।
Ravana Dahan in Ratlam fell prey to corruption. मैं रावण नहीं भ्रष्टाचार हू मुझे नहीं अपने अंदर के भ्रष्टाचार को जलाओ ३मर्तबा जलाया रतलाम के रावण को
घंटों तक लोग मैदान में डटे रहे — शायद यह देखने नहीं, समझने कि आखिर ये बार-बार अधजले पुतले किसकी ओर इशारा कर रहे हैं।
लेकिन मंच पर बैठे प्रशासनिक अधिकारी, स्थानीय प्रतिनिधि और आयोजन समिति के सदस्य… किसी के पास जवाब नहीं था।
एक महिला दर्शक की आवाज गूंजी:
पुरूष की भीड की और से रावण दहन पर आक्रोश भडक रहा था लोग नगर निगम के जिम्मेदारो को कोश रहे थे
“अगर रावण भ्रष्टाचार है, तो हम सब किसी न किसी रूप में उसके हिस्सेदार हैं।”
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संपादकीय टिप्पणी:
रतलाम का यह ‘दहन’ दरअसल एक दर्पण था — जो हमें हमारे सामाजिक और प्रशासनिक चेहरे दिखा गया। यह कोई संयोग नहीं था कि रावण तीन बार जलाया गया और फिर भी खड़ा रहा।
क्योंकि जब तक भीतर का भ्रष्टाचार जिन्दा है, तब तक बाहर के पुतले जलाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
विजयदशमी तब नहीं मनेगी जब रावण जलेगा वह तब मनेगी जब रावण दोबारा खड़ा नहीं होगा।