जलझुलनी एकादशी का विस्तृत वर्णन कैसे की जाती है जलझुलनी एकादशी वृत
जलझुलनी एकादशी का विस्तृत वर्णन कैसे की जाती है जलझुलनी एकादशी वृत
जलझुलनी एकादशी, जिसे परिवर्तिनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर) के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह विशेष एकादशी भगवान विष्णु के शयन अवस्था (योगनिद्रा) में जाने के बाद, उनके करवट (परिवर्तन) लेने का पर्व होता है। इसे “जलझुलनी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान को झूला झुलाने और जल यात्रा (जल विहार) का विशेष महत्व होता है।
जलझुलनी एकादशी का महत्व:
यह एकादशी चातुर्मास के चार पवित्र महीनों के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा में करवट लेते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु को जल विहार कराया जाता है, जिससे इसे “जलझुलनी” कहा जाता है।
यह दिन व्रत, भक्ति और पुण्य अर्जन का विशेष अवसर होता है।
जिन लोगों ने चातुर्मास का व्रत या नियम लिया हो, वे इस दिन उसका पालन और नवीनीकरण करते हैं।
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जलझुलनी एकादशी व्रत विधि (व्रत कैसे करें):
1. व्रत की पूर्व संध्या (दशमी तिथि की रात):
रात्रि को सात्विक भोजन करें।
ब्रह्मचर्य व्रत और संयम का पालन करें।
मन में व्रत का संकल्प लें।
2. एकादशी तिथि (मुख्य दिन):
प्रातःकाल:
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें (गंगाजल मिले जल से स्नान करना शुभ होता है)।
व्रत का संकल्प लें – “मैं आज जलझुलनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की कृपा हेतु कर रहा हूँ।”
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पूजा विधि:
1. घर या मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
2. उन्हें पीले वस्त्र, पुष्प, चंदन, अक्षत, तुलसी दल अर्पित करें।
3. पंचामृत से अभिषेक करें (यदि संभव हो तो)।
4. दीपक जलाएं और विष्णु सहस्त्रनाम या **’ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’** मंत्र का जाप करें।
5. भगवान को झूले पर झुलाएं (छोटा झूला या पालना बनाकर) – यही “जलझुलनी” की परंपरा है।
6. कई स्थानों पर भगवान की मूर्ति को जल में नौका या डोल (पालकी) में रखकर जल यात्रा कराई जाती है।
व्रत आहार:
दिन भर फलाहार करें या केवल जल पर रहें (निर्जला व्रत)।
अन्न, चावल, दाल, मांसाहार, लहसुन, प्याज आदि निषिद्ध होते हैं।
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रात्रि जागरण:
रात्रि को भजन-कीर्तन करें।
भगवान विष्णु की कथा या व्रत कथा सुनें।
3. द्वादशी तिथि (अगले दिन):
सूर्योदय के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
फिर स्वयं भोजन करके व्रत समाप्त करें (पारणा)।
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जलझुलनी एकादशी व्रत कथा (संक्षिप्त):
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा बलि, जो बहुत बड़ा दानी और भक्त था, ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और तीन पग भूमि माँगी। बलि ने वचन दे दिया। भगवान ने अपने विशाल रूप में तीनों लोक नाप लिए और बलि को पाताल भेज दिया। बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु पाताल में उसके यहाँ रहने चले गए।
देवताओं ने जब यह देखा कि भगवान विष्णु पाताल में हैं, तो चिंतित हुए। तब भगवान ने कहा कि वह चातुर्मास में बलि के यहाँ रहेंगे और इस दौरान शयन अवस्था में होंगे। जलझुलनी एकादशी के दिन वे करवट बदलते हैं – यह संकेत होता है कि शयनकाल समाप्ति की ओर है।
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कहाँ मनाई जाती है विशेष रूप से?
राजस्थान के नाथद्वारा, मथुरा, उज्जैन, नाशिक, पंढरपुर, हरिद्वार, वाराणसी में इसका विशेष उत्सव होता है।
नाथद्वारा में भगवान श्रीनाथजी की जल यात्रा (जलविहार) और पालकी यात्रा बहुत प्रसिद्ध है।
जलझुलनी एकादशी 2025 में कब है?
2025 में जलझुलनी एकादशी 6 सितंबर, शनिवार को मनाई जाएगी।