10 July गुरू पुनम क्यो कैसे मनाई जाती है भारत में इसका महत्व

10 July गुरू पुनम क्यो कैसे मनाई जाती है भारत में इसका महत्व

10 July गुरू पूर्णिमा क्यो कैसे मनाई जाती है भारत में इसका महत्व

गुरु पूर्णिमा भारत में एक महत्वपूर्ण पारंपरिक त्योहार है, जो गुरु (शिक्षक या आध्यात्मिक मार्गदर्शक) के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है (जो आमतौर पर जून–जुलाई में आता है)। इस दिन का धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है।


🕉️ गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?

  1. महर्षि वेदव्यास की जयंती:
    • इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि यही वह दिन है जब महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।
    • उन्होंने चारों वेदों, 18 पुराणों, महाभारत और ब्रह्मसूत्र जैसे महान ग्रंथों की रचना की थी, इसलिए उन्हें “आदि गुरु” माना जाता है।
  2. गुरु के महत्व को सम्मान देने के लिए:
    • भारतीय परंपरा में ‘गुरु’ को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है: “गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः, गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।”
  3. बौद्ध धर्म में महत्व:
    • यह दिन गौतम बुद्ध द्वारा अपना पहला उपदेश (धम्मचक्कपवत्तन) देने के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है।
  4. जैन धर्म में:
    • भगवान महावीर ने अपने प्रमुख शिष्य गौतम गणधर को इसी दिन ज्ञान दिया था, इसलिए इसे जैन परंपरा में भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
  5. 10 July गुरू पुनम क्यो कैसे मनाई जाती है भारत में इसका महत्व

🙏 गुरु पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है?

  1. गुरुओं का पूजन:
    • शिष्य अपने गुरु के चरण स्पर्श करते हैं, उन्हें पुष्प, वस्त्र, फल अर्पित करते हैं।
    • कई आश्रमों व विद्यालयों में विशेष सत्संग, प्रवचन और यज्ञ आयोजित होते हैं।
  2. वेद पाठ और ध्यान:
    • बहुत से लोग इस दिन वेदों का पाठ, ध्यान, और योग करते हैं।
  3. आध्यात्मिक अनुशासन का पालन:
    • कई लोग इस दिन व्रत (उपवास) रखते हैं और आत्मशुद्धि के लिए ध्यान व साधना करते हैं।
  4. साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजन:
    • स्कूलों, कॉलेजों और सांस्कृतिक संस्थानों में शिक्षकों का सम्मान किया जाता है।
    • 10 July गुरू पुनम क्यो कैसे मनाई जाती है भारत में इसका महत्व

🌼 गुरु पूर्णिमा का महत्व

पहलूमहत्व
आध्यात्मिकआत्मा की प्रगति में गुरु की भूमिका सर्वोपरि है।
सामाजिकगुरु-शिष्य परंपरा को बढ़ावा देता है।
शैक्षणिकशिक्षकों के योगदान को मान्यता देता है।
धार्मिकधार्मिक ग्रंथों और ज्ञान की परंपरा को याद करता है।

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