धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा.
धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा.
धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा. एवं मुनि मंडल का वर्षावास स्थल डीपी परिसर पर हुआ मंगल
प्रवेश* रतलाम, 9 जुलाई 2025 । जिनशासन गौरव आचार्य श्री उमेशमुनिजी म. सा. के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तकदेव पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा., श्री अतिशयमुनिजी म. सा. एवं मुनि मंडल का बुधवार को वर्षावास स्थल डीपी परिसर, लक्कड़ पीठा पर सादगीपूर्ण मंगल प्रवेश हुआ।
वर्षावास स्थल पर मंगल प्रवेश के पूर्व प्रवर्तक श्रीजी एवं मुनिमंडल ने स्टेशन रोड़, काटजू नगर, नौलाईपुरा स्थानक आदि क्षेत्रों में महती धर्म प्रभावना की। पूज्य श्री के सानिध्य का श्रावक श्राविकाओं ने पूरा-पूरा लाभ लिया।
प्रवर्तकदेव ने मांगलिक श्रवण कराकर आराधना की दी
प्रेरणा पुण्य पुंज साध्वी श्री पुण्यशीलाजी म. सा. तथा साध्वी मंडल भी अगवानी हेतु नौलाईपुरा रोड़ पर पहुंच गए थे। प्रवेश के दौरान श्रावक, श्राविकाएं श्रमण भगवान महावीर स्वामी, आचार्य श्री उमेशमुनिजी, प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी आदि की जय जयकार एवं गुरु गुणगान करते हुए चल रहे थे।
प्रवेश यात्रा नौलाईपुरा, चौमुखीपुल, चांदनी चौक, लक्कड़ पीठा होती हुई वर्षावास स्थल डीपी परिसर पर पहुंची। यहां प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा. ने सभी को मांगलिक श्रवण करवाई व वर्षावास में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप की विशिष्ट आराधना करने की प्रेरणा दी।
साध्वीश्री पुण्यशीलाजी आदि ठाणा का गौतम टिंबर सिलावटों का वास पर रविवार को ही मंगल प्रवेश हो गया था। साध्वीश्री ने पांच उपवास की तपस्या पूर्ण की। चातुर्मास समिति के मुख्य संयोजक श्री शांतिलाल भंडारी तथा श्री धर्मदास जैन श्री संघ के अध्यक्ष श्री रजनीकांत झामर ने बताया कि श्री संघ में तेला व आयंबिल की लड़ी भी प्रारंभ हो गई।
प्रवर्तक श्री, मुनि वृंद एवं साध्वी मंडल के सानिध्य में गुरुवार को चौमासी पर्व (वर्षावास प्रारंभ दिवस) धर्म, ध्यान, जप, तप, त्याग, प्रत्याख्यान, पौषध आदि विभिन्न आराधना से मनाया जाएगा। मुनि और साध्वी मंडल ने अधिक से अधिक आराधना करने की प्रेरणा दी।
धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा.
इंद्रियों का दमन करना ही श्रेयस्कर
वर्षावास स्थल डीपी परिसर में आयोजित धर्मसभा में पूज्य श्री जिनांशमुनिजी म. सा. ने फरमाया कि तीर्थंकर भगवान सभी को अच्छे लगते हैं। भगवान महावीर स्वामी ने ऐसी आराधना की कि वे तीर्थंकर बन गए। उन्होंने अपनी आत्मा का दमन कर संयम और तप में रमण किया और वही मार्ग हमें बताया। अपनी इंद्रियों का दमन करना ही श्रेयस्कर है। बिना संयम के आत्मा का दमन नहीं होता है। संयम के बाद पुरुषार्थ करना है।
संयम से आते हुए कर्म रुक जाते हैं।
लेकिन आत्मा में जो पुराने कर्म पड़े हैं, उन कर्मों को तप से खत्म करना है। इसीलिए संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करना है। इसके बिना जीव मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते हैं। भगवान की वाणी पर विश्वास है तो संयम और तप में निरंतर पुरुषार्थ करना चाहिए। चार महीने सारे काम छोड़ दो, संयम और तप आराधना से अपनी आत्मा को भावित करे। आत्मा को भावित करेंगे तो ही सारे पापों से मुक्ति मिलेगी ।
संयम लेने में कौन सी चीज बाधक बन रही है ?
प्रत्याख्यानावर्णीय चरित्र मोहनीय कर्म । इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा चारित्र आत्माओं के संयम का निरीक्षण करते रहना है उन्हें देखकर निरंतर चिंतन करना है कि कब मैं भी चरित्र मोहनीय कर्म को घटाकर सर्वविरती अंगीकार करूंगा? राग द्वेष को क्षमा भाव से खत्म करना और ऐसा चिंतन करना है कि कब मैं संयम लूं और अपनी आत्मा को संयम और तप से भावित करूं।
धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा.
शक्ति को तोलने का अवसर आया है
रतनपुरी गौरव पूज्य श्री श्रेयांशमुनिजी म. सा. ने फरमाया कि प्रभु ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप ये मार्ग बताएं हैं। सबका लक्ष्य एक ही है जो भगवान ने मार्ग बताया है। वही तारने वाला है, आचरण करने योग्य है। चार महीने रत्नपुरी की पहचान सोना और सेव को भूलना है। चार महीने सिर्फ साधु-संतों को याद रखना है।
गुरु, भगवंत का लाभ लेना है। अपनी शक्ति अनुसार, रुचि अनुसार, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप की आराधना करना है। ऐसी प्रतिकूलता में भी कैसी साधना, पूज्यश्री के जीवन को देखना है। उनसे सीखना है। चार महीने अपनी आत्मा को गुरुजनों से जोड़ना है।
जिनवाणी प्रतिदिन क्यो सुनते हैं ? काम का लोभ छोड़कर, धन कमाने का समय गंवाकर, क्या लाभ होगा ? अनादि काल के अशुभ कर्मों का निपटारा हो सकता है, सुनकर धर्म की तरफ बढ़े। यह चौमासा कुछ खास है, क्योंकि गणनायकश्रीजी का पावन सानिध्य मिला है। यह चार महीने हमें अपनी आत्मा को देना है। शक्ति को तोलने का अवसर आ गया है, शक्ति को तोल कर आराधना में लगने का समय आ गया है। कुमार्ग को छोड़ना है, सन्मार्ग पर चलना है, चार महीने धर्म में लगाना है।
धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा.
विभिन्न तप, त्याग के प्रत्याख्यान हुए
चातुर्मास समिति ने आह्वान किया की अधिकतम ज्ञान-दर्शन-तप आराधना के द्वारा इस वर्षावास को सफल बनाना है। सुनीता पीचा, राजमल चौपड़ा, प्राची बाबेल आदि ने स्तवन प्रस्तुत किया। भंवरलाल बोहरा ने आठ उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। वहीं कई आराधकों ने विविध तप के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।
यहां कई आराधकों की गुप्त तपस्या भी चल रही है।
संचालन अणु मित्र मंडल के मार्गदर्शक वीर भ्राता राजेश कोठारी ने किया। धर्मसभा में थांदला, दाहोद, संजेली आदि कई स्थानों के श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे। प्रभावना का लाभ श्री धर्मदास जैन श्री संघ ने लिया।
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